आध्यात्मिक सिद्धांतों और अपनी प्रकृति की समझ के आधार पर संबंधों को कैसे सफल बनाया जाए पर सुझाव।
&bull  आज संबंध हैं तो आध्यात्मिक हैं या कोई संबंध नहीं।आध्यात्मिक संयोजन के बिना संबंध टिक नहीं सकते।
इस समय में जब तक कि एक पुरूष और एक नारी के बीच एक आध्यात्मिक संपर्क ना हो,उनके लिए अधिक समय तक एक अच्छे संबंध को बनाए रखना वस्तुत: असंभव है।आज तलाक अनगिनत हैं,और अधिकतर संबंध बिखर जाते हैं,क्योंकि हमारे अहं,"आग पर" हैं और समय के साथ साथ ये केवल बढ़ते ही हैं।यह सुन्दर पद्य,"पुरुष,स्त्री और उनके बीच दिव्य उपस्थिति"-ऐसे दंपतियों में बिल्कुल भी मौजूद नहीं है।
तो उनके बीच इस आध्यात्मिक संबंध को बनाने के लिए क्या चाहिए,केवल वह जो उनके संबंध का उपचार कर सके?एक आध्यात्मिक संबंध होने का मतलब है कि दोनों सहयोगी अपने अस्तित्व के कारण को जनाते हैं-आध्यात्मिक यात्रा का आरम्भ और जीवन के आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ती।तब उनके पास कुछ होगा जो वास्तव में उन्हें जोड़ेगा।वे परस्पर,"लघु समूह" में साथ-साथ होंगे और पद्य,,"पुरुष,स्त्री और उनके बीच दिव्य उपस्थिति" वास्तव में सच हो जाएगा।दूसरे शब्दों में,वे दिव्य उपस्थिति-सृजनकर्ता के प्रकटीकरण का अनुभव कर सकेंगें।
&bull आभासी संबंधों के बारे में सच्चाई।
&bull आभासी संबंध हमारी अपनी कल्पना के उत्पाद हैं।
बहुत से लोग आज सामाजिक साइटों जैसे कि फेसबुक पर,"आभासी रोमांटिक संपर्क" बनाते हैं। वह अन्य लोगों से मिलते हैं,फ़ोटो आदान-प्रदान करते हैं,और यहाँ तक कि अपने आभासी साथियों से प्रेम करने लगते हैं।
हमारा अपने आभासी साथियों की ओर इतना आकर्षित हो जाने का कारण यह है कि उनके साथ हम जो संबंध बना लेते हैं,वह अलौलिक हैं,शारीरिक संबंध से परे,और यहाँ तक कि यह संबंध एक तरीके से,"आध्यात्मिक" होते हैं।चूँकि हम किसी भी भौतिक सीमा से बंधे नहीं होते,हम जितना भी चाहे कल्पना करने के लिए आ़जाद होते हैं।हम अपने महत्वपूर्ण आभासी को सभी सर्वोतम गुणों का उत्तरदायी मान लेते हैं और उनके साथ उपने संबंध को इतना ऊपर उठा लेते हैं जैसे कहते हैं कि,"बादलों में" रहना।हम खुद को यकीन दिला देते हैं कि कैसे यह संबंध विशेष है और यह भी कि यह एक सुन्दर व पूर्ण प्रेम तक पहुँचने का एक अवसर है।
परन्तु दुर्भाग्यवश,यह सब एक भ्रम है।इंटरनेट पर,एक व्यक्ति की शारीरिक आकृतियाँ झुपी रहती हैं और उसके भीतरी पहलुओं पर बल डाला जाता है।व्यक्ति किसी भी तरीके से जैसे वह चाहता हो स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है,परन्तु समस्या यह है कि जैसे जैसे अनजाने में हम इस खेल में डूबते जाते हैं,हम वास्तविकता से दूर होते जाते हैं।हम भूल जाते हैं कि हम एक वास्तविक व्यक्ति से नहीं बल्कि अपनी ही कल्पना से संबंध बना रहे होते हैं।
जब हम वास्तविक जीवन में किसी को देखते हैं,स्वयं उपस्थित रहते,तब हम बता सकते हैं कि उसमें वस्तुत: कुछ गुण हैं भी कि नहीं,और यह भी कि उसके गुण वास्तविक भी हैं कि नहीं।इंटरनेट पर,बहरहाल,हम केवल एक फ़ोटो(सावधानी से चयनित) को देखते हैं और कुछ पंक्तियाँ पढ़ते हैं जो कि सामान्यता संभावित झूठी होती हैं-और हम उनकी कल्पना करते रहते हैं जो कि पूरी तरह से अवास्तविक हैं।लेकिन जैसे ही हम अपने आभासी साथियों से व्यक्तिगत् मिलते हैं,यह मीठी कल्पना का बुलबुला फट जाता है।
&bull  परिकथा प्रेम बस एक परिकथा ही है।
&bull  सच्चा प्रेम केवल आध्यात्मिक संसार में मौजूद है।
यदि आप सोचते हैं कि परिकथाओं का प्रेम ढूँढने से आपको प्रसन्नता प्राप्त होगी,तो फिर से सोचिए।परिकथाओं का प्रेम,सच में,प्रेम नहीं है परन्तु आत्मा-संतुष्टि के लिए दूसरों का उपयोग है।
जिसे हम आम तौर पर प्रेम कहते हैं,वह चाहे यौन संतुष्टि हो या फिर किसी अन्य प्रकार की पूर्ति जो हम दूसरे व्यक्ति से प्राप्त करते हों,वह एक व्यक्ति की दूसरे द्वारा स्वार्थयुक्त संतुष्टि है।और ज़ाहिर है,यह प्रेम नहीं है।
तो फिर प्रेम है क्या?जब आप अपने स्वयं पर कोई ध्यान नहीं देते लेकिन आप अन्य व्यक्ति की इच्छाओं को धारण कर लेते हैं,ठीक वैसे ही जैसे वह चाहता है,वह प्रेम है।दूसरे शब्दों में,आप स्वयं को अन्य व्यक्ति के लिए एक पूर्ति का पात्र में ढाल लेते हैं।यह प्रेम सच्चा प्रेम है,और यह केवल आध्यात्मिक संसार में मौजूद है।और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता चाहे वह एक पुरूष हो या फिर एक महिला।महत्वपूर्ण तो इच्छाएँ---आत्मा है।
इसकी तुलना में,जब हम संसार में प्रेम की बात करते हैं,वास्तव में,हम शरीर में उत्पन्न रासायनिक पदार्धों(हार्मोन)द्वारा लाए गए आकर्षण और आनंद की चर्चा कर रहे होते हैं।यदि हम एक व्यक्ति का उसके शरीर में उत्पन्न हार्मोनल प्रणाली से नाता तो़ड दें,तो वह ,"प्रेम" को अनुभव करने में सक्षम नहीं होगा।यह फिर वही दर्शाता है कि जिसे हम सामान्य प्रेम समझते हैं,वह आनंद प्राप्त करने के लिए एक स्वार्थयुक्त इच्छा है।कभी कभी यह स्वार्थयुक्त इच्छा क्रूर भी हो सकती है,जब यह अन्य व्यक्ति की कीमत पर अपनी पूर्ति की अभिलाषा करती है।
अत: जिस प्रेम के बारे में हम परिकथाओं में पढ़ते हैं,वह वस्तुत: एक भ्रम है;और वास्तविकता में यह प्रेम मौजूद नहीं है।यह इसलिए क्योंकि हमारी सभी इच्छाएँ केवल अपनी आकांक्षा को पूरा करने की अभिलाषा पर आधारित हैं।यहाँ तक कि जब हम दूसरों को कुछ देते हैं,हम केवल इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि इससे हमें खुद को खुशी मिलती है।हमारी यह देने की क्रिया अर्धहीन है क्योंकि जिससे हमें सचमुच मतलब है वह यह कि देते समय हम क्या अनुभव करते हैं।
&bull  काबलिक मूल पाठों में विशेष गुण हैं जो एक सफल सांझेदारी को सुनिश्चित करते हैं।
&bull  अपने संबंधो को मज़बूत करना चाहते हैं?काबलिक मूल पाठों को एक साथ पढ़ें।
विशेष काबलिक मूल पाठ हैं जो सांझेदारी और एकजुटता की चर्चा करते हैं।जब एक दंपति इन्हें एक साथ पढ़ता है,ये उनके घरों में शांति और संतुलन लाते हुए उनके आध्यात्मिक संबंध को बहुत सुदृढ़ कर देते हैं।
जब एक पति और पत्नी काबलिक पाठों को एक साथ पढ़ते हुए दिन में १५ मिनट का समय बिताते हैं,तो ये उनके संबंध में एक विशेष गुण लेकर आता है।इन पाठों में उनके बीच की समस्याओं को हल करने की शक्ति है।ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें महान् शक्ति है।
इसके अलावा,जिस व्यक्ति को आप अपनी सभी भावनाएँ प्रकट कर सकते हैं,वह है आपका पति या आपकी पत्नी।आध्यात्मिक पथ पर(अपने पति या पत्नी को छोड़कर)अपनी गहरी भावनाओं व अपने आंतरिक अनुभवों के विषय में चर्चा करनी निषिद(असंभव)है।अपनी भावनाओं को सांझा करते,पति और पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं,और वे फिर एक साथ आध्यात्मिकता की ओर बढ़ते हैं।