BNEI BARUCH WORLD CENTER FOR KABBALAH STUDIES

वास्तविकता क्या है?

कबला और वास्तविकता की धारणा

कबला-विज्ञान में,हम अध्ययन करते हैं कि हमें क्या करना चाहिए ताकि हम एक छिपि हुई संरचना में प्रवेश कर सकें।हम यह भी अध्ययन करते हैं कि अपने संसार से परे हम कैसे ऊपर उठ सकते हैं,उस क्षेत्र तक जो इसे संचालित करता है।

हम संसार को अपने भीतर महसूस करते हैं।हमारी पाँच इन्द्रियाँ कुछ बाहरी उद्दीपन ग्रहण करती हैं और इसे मस्तिष्‍क को भेज देती हैं,जहाँ यह प्रक्रम होती हैं,हमारे लिए इस संसार की एक तस्वीर बनाती हुईं,और इस तस्वीर के बाहर हम कुछ भी महसूस नहीं करते।

जिस संसार को,"हम जानते हैं" वह बाहरी प्रभावों के लिए हमारी प्रतिक्रियाएँ हैं।संसार,"अपने आप"में अज्ञात है।उदाहरण के लिए, यदि मेरे कान का परदा क्षतिग्रस्त है और मुझे कुछ सुनाई नहीं देता तो ध्वनि मेरे लिए मौजूद नहीं है।मैं केवल एक सीमा के भीतर महसूस करता हूँ जिसकी मुझे आदत पड़ी हुई है।

संसार की हमारी धारणा पूरी तरह से व्यक्‍तिपरक है;हमसे बाहर जो घटता है उसके बारे में यह कुछ नहीं कहती।हमारे अनुसार हमसे बाहर कुछ प्रकट हो रहा है और उसके प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को ही हम समझते हैं।परन्‍तु क्या वास्तव में कुछ भी बाहर घट रहा है?

कई सिद्धांत इसके बारे में चर्चा करते हैं। न्‍यूटन के सिद्धांत ने व्यक्‍त किया कि वस्तुनिष्‍ठ वास्तविकता होती है,कि संसार वैसा है जैसे हम इसे देखते हैं और यह हमारी अस्तित्वता के बिना भी मौजूद है।बाद में,आइंस्टाइन ने अनुमान लगाया कि वास्तविकता की धारणा    निरीक्षक की गति और निरीक्षित की गति के बीच संबंध पर निर्भर करती है।दूसरे शब्दों में,एक वस्तु की गति की तुलना में अपनी गति बदल कर,हम उसे पूरी तरह से भिन्‍न देखते हैं।दूरी विकृत,संक्षिप्‍त या विस्तृत हो जाती है,और समय बदल जाता है।

दूसरे सिद्धांत,जैसे कि हाइज़ेनबर्ग के अनिश्चित सिद्धांत ने व्यक्‍ति और संसार के बीच पारस्‍परिकता का प्रस्ताव रखा।दूसरे शब्दों में,वास्तविकता की धारणा मेरा प्रभाव संसार पर और संसार का प्रभाव मुझ पर का परिणाम है।

कबला-विज्ञान व्याख्या करता है कि इन्द्रियगोचर वास्तविकता हमसे बाहर नहीं है।अपने से बाहर हम कुछ भी प्रभावित नहीं करते,क्योंकि हम अपने से बाहर कुछ महसूस ही नहीं करते।हमसे बाहर,केवल उच्च प्रकाश है।संपूर्ण संसार हमारे भीतर है और हम अनुभव करते हैं कि हम बाहर से प्रभावित होते हैं,ऐसा इसलिए,क्योंकि हमारी उत्पति इस तरीके से हुई है।

यदि हम अपने संसार के बाहर हो जाएँ,हम देखना आरम्भ कर देगें कि कैसे उच्च प्रकाश हमारे भीतर के संसार में सदैव नई तस्वीरों को जन्म देता है। यह संपूर्ण संसार फिर छोटा और सीमित हो जाता है। हम देखते हैं कि जिस तरीके से हम अपने आप को और वातावर्ण को महसूस करते हैं,उसे उच्च प्रकाश कैसे निर्धारित करता है,और अतंत: हम इस प्रकिया को नियंत्रित करना आरम्भ कर देते हैं।

कबला-विज्ञान हमें यह क्षमता अनुदान करता है।हम यह समझना आरम्भ कर देते हैं कि हमारी सीमित क्षमताओं का कारण हमारे अपने भीतर है।यदि हम अपने आंतरिक विशेषताओं को उच्च प्रकाश की विशेषताओं के समान कर लें,हम संपूर्णता और अनंत के स्तर पर पहुँच जाएँगें,जिसे,"अनंत का संसार"-अनंत जीवन और पूर्ण पूर्ति कहते हैं।

यह सब केवल हमारे आतंरिक विशेषताओं को बदलने पर निर्भर करता है। इसी लिए कबला-विज्ञान हमें यह अभिव्यक्‍त करने का उद्देश्‍य रखता है कि स्वयं को बदल कर(और इसे जल्द कर, एक जीवन काल में ही) हम इस सांसारिक अस्तित्वता के ऊपर उठना आरम्भ कर देते हैं। हमारे शरीर इसी संसार में रहते हैं और हम अपने परिवारों,बच्चों,संसार व समाज के साथ सामान्‍य जीवन व्यतीत करते हैं। परन्तु इन सब के साथ हम एक अनुवृद्धि प्राप्‍त कर लेते हैं-उच्च वास्तविकता-जहाँ हम अपनी उत्कृष्‍ट ज्ञानेंद्री में निवास करते हैं।